नये आपराधिक कानून , 2023

अपराध अनुसंधान विभाग

बिहार राज्य के अपराध अनुसंधान विभाग की स्थापना वर्ष-1913 में की गयी । उस समय आसुचना शाखा, अन्वेषण शाखा, विशेष शाखा, अंगुलांक एवं फोटोग्राफी ब्यूरो शाखाएं बनायी गयी। वर्ष-1981 में अपराध अनुसंधान विभाग के उप-महानिरीक्षक का पद उत्क्रमित कर पुलिस महानिरीक्षक का किया गया। कार्यो की महत्ता, गूढ़ता तथा अधिकता को देखते हुए 1988 में पुलिस महानिरीक्षक के पद को उत्क्रमित कर अपर पुलिस महानिदेशक का किया गया।

अपराध अनुसंधान विभाग का मुख्य कार्यः अपराध अनुसंधान विभाग द्वारा पुलिस हस्तक नियम 425 एवं 410 (बी0)(II) में निहित अनुदेशों के आधार पर संवेदनशील एवं गम्भीर काण्डों का अनुसंधान एवं नियंत्रण किया जाता है तथा अग्रतर अनुसंधान/नियंत्रण की कार्यवाही विशेषीकृत शाखाओं यथा मानवाधिकार शाखा, मानववध शाखा एवं के00आर0विविध शाखा द्वारा की जाती है। अपराध अनुसंधान विभाग से जिलों में क्षेत्रीय सतर पर एक पुलिस उपाधीक्षक एवं जिलोकं में एक पुलिस निरीक्षक के नेतृत्व में सी0बी0टीम कार्यरत है। सी0बी0टीम द्वारा लोक महत्व के अपराध जैसे अपहरण, हत्या, डकैती, रोड डकैती/लूट, पुरातात्विक मूर्ति चोरी आदि पर अपना प्रतिवेदन अपराध अनुसंधान विभाग को देता है तथा काण्डों के अनुसंधान में इनकी भी महती भूमिका रहती है।

विधि विज्ञान प्रयोगशाला

पटना में वर्ष 1960 में विधि विज्ञान प्रयोगशाला का अधिष्ठापन हुआ है। कालांतर में वैज्ञानिक अनुसंधान की बढ़ती महत्ता को देखते हुए मुजफ्फरपुर में वर्ष 2015 एवं भागलपुर में वर्ष 2018 से में क्षेत्रीय विधि विज्ञान प्रयोगशाला कार्यरत है। शेष 09 पुलिस क्षेत्रों में भी क्षेत्रीय विधि विज्ञान प्रयोगशालाओं को विस्तारित किया जा रहा है, जिसकी कार्यवाही प्रक्रियाधीन है। साथ ही हर जिले तक वैज्ञानिक अनुसंधान के विस्तार की मंशा से प्रथम चरण में जिला चलंत विधि विज्ञान प्रयोगशाला इकाई गया एवं पूर्णिया क्रमश: 2022 एवं 2021 से कार्यरत है। रोहतास में चलंत विधि विज्ञान प्रयोगशाला का भवन तैयार है जो हस्तगत होने की प्रक्रिया में है। अगले चरण में शेष जिलों में चलंत विधि विज्ञान प्रयोगशाला इकाई का विस्तार किया जायेगा।

अंगुलांक ब्यूरो: बिहार अंगुलांक ब्येरो की स्थापना वर्ष 1912 में हुई थी। इसके तहत अपराधकर्मी/दोषसिद्ध/गिरफ्तार व्यक्तियों के अंगुलियों के निशान संरक्षित किया जाता है। अंगुलांक ब्यूरों के द्वारा एन0सी0आर0बी0 के द्वारा NAFIS के तहत संचालित कार्यशालाओं में काफी संख्या में पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षित किया गया है। वर्तमान में सभी जिलों में NAFIS का अधिष्ठापन कार्य चल रहा है।

फोटो ब्यूरो

फोटो ब्यूरो की स्थापना 1912 मे हुई थी। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के एस0एल0पी0 (क्रिमिनल) सं0 2302/2017 शफी मोहम्मद बनाम हिमाचल प्रदेश में दिनांक-03.04.2018 को पारित न्यायादेश के आलोक में गम्भीरी अपराध के मामले में घटनास्थल की फोटोग्राफी/वीडियोग्राफी आवश्यक है। न्यायादेश के आलोक में पुलिस पदाधिकारियों को अपराध घटास्थल की फोटोग्राफी का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। अपराध अनुसंधान विभाग द्वारा अभी तक कुल 2098 पुलिस पदाधिकारियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।

उच्चतर प्रशिक्षण विद्यालय

उच्चतर प्रशिक्षण विद्यालय की स्थापना 1952 में की गयी थी। इसका उद्देश्य वैज्ञानिक पद्धति से अनुसंधान कराने, जिससे अनुसंधान की गुणवता में सुधान तथा ठोस साक्ष्य संकलित कर दोषसिद्धि की औसत में वृद्धि कराने के उद्धेश्य से प्रशिक्षित किया जाता है। वर्ष 2022 में 195 पुलिसकर्मियों को वैज्ञानिक अनुसंधान हेतु प्रशिक्षित किया गया है।

श्वान दस्ता

वर्ष 1955 में श्वान दस्ता का गठन अपराध अनुसंधान विभाग में किया गया है। राज्य पुलिस के पास वर्तमान में कुल 62 श्वान जिसमें जर्मनशेफ्र्ड, लेब्राडाॅर,बेल्जियम मेलोनाईस नस्ल के श्वान है, जो मुख्यालय के साथ-साथ सभी क्षेत्रीय सतर पर कार्य कर रहा है। इन श्वानों द्वारा कई महत्वपूर्ण कांडों के उद्भेदन/बरादमगी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गयी है। साथ ही आमजन, महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों एवं गणमान्य व्यक्तियों की सुरक्षा में श्वान दस्ता की काफी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। लिकर श्वान दस्ता की मदद से वर्ष 2022 में विदेशी शराब 3363.44 लीटर, देशी शराब 46671.78 लीटर बरामद किया गया है तथा इसके सहयोग से कुल 610 गिरफ्तारियां भी हुई हैं तथा ट्रेकर श्वानों द्वारा विभिन्न जिलों में कई काण्डों के उद्भेदन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी गयी है।

अपराध अनुसंधान विभाग का नेतृत्व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध अनुसंधान विभाग) करते हैं, जिनकी सहायता, पुलिस महानिरीक्षक (अपराध) एवं पुलिस उप महानिरीक्षक (अपराध) एवं पुलिस उप महानिरीक्षक (ड0 नि0) और 3 पुलिस अधीक्षक (सी0 / डी0 / ई0) करते हैं।